अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मंच पर पिछले 12 महीनों में अमेरिका, यूरोप और अन्य प्रमुख लोकतंत्रों को कई झटके लगे.
हालांकि इनमें से कोई भी विनाशकारी नहीं रहा, लेकिन वे अमेरिका-प्रभुत्व वाले पश्चिमी मूल्यों से दूर बदलते शक्ति संतुलन की ओर इशारा करते हैं, जो सालों से प्रभावी रहे हैं.
कई मोर्चों पर पश्चिमी हितों के लिए हवा ग़लत दिशा में बह रही है. इस कहानी में बताया गया है कि क्यों और हो रहे बदलावों से अब भी क्या लाभ हो सकते हैं.
यूक्रेन का युद्ध
काला सागर में हाल में मिली कुछ सफलताओं के बाद भी युद्ध यूक्रेन के लिए अच्छा नहीं चल रहा है.
इसका मतलब है कि यह नेटो और यूरोपीय संघ के लिए बुरा होगा, जिन्होंने यूक्रेन के युद्ध प्रयासों और इसकी अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर की मदद की है
इसी समय पिछले साल नेटो को बहुत उम्मीदें थीं कि पश्चिमी देशों में आधुनिक सैन्य उपकरणों और गहन प्रशिक्षण के साथ यूक्रेन की सेना बढ़त वापस ले सकती है.
वह रूसियों द्वारा जब्त किए गए अधिकांश इलाक़ों से उन्हें बाहर धकेल सकती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.
समस्या समय निर्धारण की है. नेटो देशों को इस बात पर विचार करने में काफ़ी समय लग गया कि क्या वे ब्रिटेन के चैलेंजर 2 और जर्मनी के लेपर्ड 2 जैसे आधुनिक युद्धक टैंकों को यूक्रेन भेजने की हिम्मत करेंगे, क्या इससे वो राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को जल्दबाज़ी में किसी जवाबी कार्रवाई के लिए उकसा पाते हैं.
अंत में, पश्चिम ने टैंक तो दिए लेकिन राष्ट्रपति पुतिन ने कुछ किया नहीं. लेकिन जब जून में वे युद्ध के मैदान पर तैनात होने के लिए तैयार हुए, तब तक रूसी कमांडरों ने मानचित्र को देखा और इस बात का सटीक अनुमान लगाया कि यूक्रेन का मुख्य प्रयास कहाँ होने वाला था.
उन्हें लगा कि यूक्रेन ज़ापोरिज्जिया क्षेत्र से होते हुए अज़ोव सागर की ओर दक्षिण की ओर बढ़ना चाहेगा, रूसी मोर्चे में सेंध लगाकर उन्हें दो हिस्सों में बाँट देगा और क्राइमिया को काट देगा.
रूसी सेना ने 2022 में कीएव पर कब्ज़ा करने के अपने प्रयासों में भले ही निराशाजनक प्रदर्शन किया हो, लेकिन जहाँ वह उत्कृष्ट है, वहां उसने मज़बूती दिखाई.
2023 की पहली छमाही में जब यूक्रेनी ब्रिगेड ब्रिटेन और अन्य जगहों पर प्रशिक्षित हो रही थी और जब टैंक पूर्वी मोर्चे पर भेजे जा रहे थे, उस समय रूस आधुनिक इतिहास में रक्षात्मक किलेबंदी की सबसे बड़ी और सबसे व्यापक मोर्चे का निर्माण कर रहा था.
टैंक रोधी बारूदी सुरंगे, माइंस, सैनिक रोधी माइंस, बंकर, खाइयों, टैंकों का मकड़जाल, ड्रोन और तोपखाने मिलकर यूक्रेन की योजना को विफल कर रहे हैं. इसका बहुप्रतीक्षित जवाबी हमला विफल हो गया.
इसराइल ग़ज़ा युद्ध
इसराइल-हमास युद्ध स्पष्ट रूप से सभी ग़ज़ावासियों और उन इसराइलियों के लिए विनाशकारी रहा है, जो सात अक्टूबर को दक्षिणी इसराइल में हमास के जानलेवा हमले से प्रभावित हुए थे. यह पश्चिम के लिए भी बुरा रहा है.
इस युद्ध ने वैश्विक ध्यान को नेटो के सहयोगी यूक्रेन से हटा दिया है, जो इस सर्दी में रूस को आगे बढ़ने से रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है. इसने अमेरिकी हथियारों को कीएव से दूर इसराइल की ओर मोड़ दिया है.
लेकिन इन सबसे बढ़कर दुनिया के कई मुसलमानों और अन्य लोगों की नज़र में इसने संयुक्त राष्ट्र में इसराइल की रक्षा करके अमेरिका और ब्रिटेन को ग़ज़ा के विनाश में भागीदार बना दिया है.
रूसी वायु सेना ने सीरिया के अलेप्पो पर बमबारी की थी, उसने सात अक्टूबर के बाद से मध्य-पूर्व में अपने समर्थन में बढ़ोतरी देखी है.
यह युद्ध पहले ही दक्षिणी लाल सागर तक फैल चुका है, जहाँ ईरान समर्थित हूती लड़ाके जहाजों पर हमले कर रहे हैं, इससे चीज़ों की क़ीमतें बढ़ रही हैं, क्योंकि दुनिया की प्रमुख शिपिंग कंपनियां अफ्रीका के दक्षिणी सिरे के चारों ओर अपना रास्ता बदलने के लिए मजबूर हैं.
ईरान का बढ़ता दबदबा
ईरान पर गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित करने का संदेह है. इससे वो इनकार करता है.
पश्चिमी देशों के प्रयासों के बाद भी वह अलग-थलग होने से बहुत दूर है. उसने प्रॉक्सी मिलिशिया के ज़रिए इराक़, सीरिया, लेबनान, यमन और ग़ज़ा में अपने सैन्य जाल फैलाए हैं. इन मिलिशिया को वह धन, प्रशिक्षण और हथियार देता है.
इस साल ईरान को रूस के साथ एक क़रीबी गठबंधन बनाते हुए देखा गया है. वह रूस को यूक्रेन के कस्बों और शहरों में लॉन्च करने के लिए शहीद ड्रोन की लगातार आपूर्ति कर रहा है.
कई पश्चिमी देशों द्वारा ख़तरा बताए जाने के बाद भी ईरान ने मध्य पूर्व में ख़ुद को फ़लस्तीनी के हमदर्द के रूप में स्थापित कर ग़ज़ा युद्ध से लाभ उठाया है
उत्तर कोरिया
ऐसा माना जाता है कि डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया पर उसके प्रतिबंधित परमाणु हथियारों और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम के कारण सख़्त अंतरराष्ट्रीय पांबदियां लगी हुई हैं.
इसके बाद भी उसने इस साल रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हैं. उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने रूसी बंदरगाह शहर का दौरा किया.
चीन
कुछ हद तक, 2023 में सैन फ्रांसिस्को में राष्ट्रपति जो बाइडन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच काफ़ी हद तक सफल शिखर सम्मेलन के साथ, दोनों देशों में तनाव में कमी देखी गई.
लेकिन चीन ने दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर अपने दावों से पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दिया है उसने ताइवान पर अपना दावा भी नहीं छोड़ा है. उसने ज़रूरत पड़ने पर ताइवान को बलपूर्वक वापस लेने की कसम खाई है. चीन ताइवान में चुनाव के लिए दबाव बढ़ा रहा है.