December 3, 2024
woman meditating in the outdoors

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5 साल पुराने कानून के बावजूद कई इंश्योरेंस कंपनियों ने इंश्योरेंस पॉलिसी में मेंटल हेल्थ(Mental Health) से संबंधित बीमारियों को शामिल नहीं किया. लेकिन अब एक बार फिर बीमा नियामक संस्था IRDA ने निजी बीमा कंपनियों को इस महीने के अंत तक इस नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा है.

depressed woman having headache and stress
Mental Health

बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने हाल ही में बीमा कंपनियों को 31 अक्टूबर से पहले हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी (Health Insurance Policy) के तहत मानसिक बीमारी के लिए सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया था.



IRDAI ने बीमा कंपनियों को दिया निर्देश

IRDAI ने निर्देश जारी करते हुए कहा कि सभी इंश्योरेंस प्रोडक्ट मानसिक बीमारी (Mental Health) से जुड़ा कवर देंगे और एमएचसी(MHC) अधिनियम, 2017 के प्रावधानों का पालन करेंगे. बीमा कंपनियों से 31 अक्टूबर 2022 से पहले इस अनुपालन की पुष्टि करने का अनुरोध किया जाता है.

अगस्त 2018 में IRDAI ने सभी बीमा कंपनियों को अधिनियम के प्रावधानों का तत्काल प्रभाव से पालन करने का निर्देश दिया था और कहा था कि बीमाकर्ताओं को शारीरिक और मानसिक बीमारियों(Mental Health) के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए.

क्या है मेंटल हेल्थकेयर एक्ट (Mental HealthCare Act) 2017?

मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 का उद्देश्य है कि मानसिक बीमारियों से जूझ रहे प्रत्येक नागरिक को सही स्वास्थ्य देखभाल और सर्विसेज मिल सके. आईआरडीएआई(IRDAI) सर्कुलर के अनुसार, 31 अक्टूबर 2022 तक सभी बीमा कंपनियों को सभी इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स ऐसे बनाने होंगे जो मेंटल इलनेस या मानसिक बीमारियों को कवर कर सकें.

इंश्योरेंस इंडस्ट्री से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पब्लिक सेक्टर इंश्योरेंस कंपनियों ने मानसिक बीमारियों के लिए कैशलेस ट्रीटमेंट की सुविधा दी है लेकिन प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियों ने इन प्रावधानों का शामिल नहीं किया है. लेकिन अब IRDA के निर्देश से बीमा कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा और इसका सीधा लाभ पॉलिसीधारकों को मिलेगा. हालांकि, अभी यह साफ नहीं है कि बीमा कंपनियां हेल्थ पॉलिसी में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी किस तरह की समस्याओं को शामिल करने जा रही हैं.

भारत में बढ़ रहे हैं मानसिक सेहत (Mental Health)से जुड़े मामले

gray scale photo of man covering face with his hands

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का बोझ प्रति 100,000 जनसंख्या पर 2,443 विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (डीएएलवाई) है और प्रति 100,000 जनसंख्या पर आयु-समायोजित आत्महत्या दर 21.1 है. 2012 और 2030 के बीच मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के कारण आर्थिक नुकसान 1.03 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है.

वहीं, कोरोना महामारी के बाद से मेंटल हेल्थ के मामले बढ़ें हैं और इन पर फोकस भी बढ़ा है. भारत में लोग तनाव और एंजाइटी को लेकर ज्यादा संवेदनशील हुए हैं और इनके इलाज के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट ले रहे हैं.

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