बात 1927 में मद्रास में आयोजित अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन की है, आयोजन कई मायनों में बहुत चर्चित और काफी प्रतिष्ठित भी रहा । लोगो का चौकना बेहद स्वाभाविक था क्योकि उस समय महिलाओं का इतना बढ़ चढ़ के किसी भी छेत्र में भाग लेना या सम्मलित होना आम बात नहीं होती थी |
लेकिन यह बात रंगनायकी को कहाँ मंज़ूर थी, वो तो अपने कला के प्रति समर्पित और समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए आगे बढ़ चुकी थी | अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन के प्रमुख पहलुओं में से एक सबसे रोचक और आकर्षित कर लेने वाली बात थी, 17 वर्षीय थिरुकोकर्णम रंगनायकी अम्मल की भागीदारी|
वह 23 मृदंगम कलाकारों में एकमात्र महिला थीं जिन्होंने इस कार्यक्रम में प्रस्तुति दी थी और सबको अचंभित कर दिया था । 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ये कोई आम बात नहीं थी संगीत के इतिहास का विश्लेषण करते समय कोई भी रंगनायकी अम्मल को पहली महिला के रूप में संदर्भित कर सकता है थिरुकोकर्णम रंगनायकी अम्मल कर्नाटक तालवाद्य के पुरुष-प्रभुत्व वाले क्षेत्र में अपनी जगह बनायीं, उस दौर में उन्होंने किन संघर्षो का सामना किया होगा हम सब समझ ही सकते है|
थिरुकोकर्णम रंगनायकी अम्मल का जन्म 28 मई,1910 को हुवा वो सात भाई-बहनों में दूसरे नंबर की थीं। उनके पिता थिरुकोकर्णम शिवरामन एक प्रसिद्ध नटुवनार थे, जो अपने अवधना पल्लवियों के लिए भी जाने जाते थे वो दोनों हाथों, पैरों और सिर का उपयोग करके अलग-अलग ताल बजाने की कला में माहिर थे |
शायद उनके लय कौशल से प्रेरित होकर, रंगनायकी भी मृदंगम में चली गईं और प्रसिद्ध पुदुकोट्टई दक्षिणमूर्ति पिल्लई के संरक्षण में मृदंगम सिखने लगी, यहां तक कि उन्होंने भरतनाट्यम में अपना प्रशिक्षण जारी रखाऔर सिखने का सिलसिला उन्होंने कभी नहीं छोड़ा | हम सबके के लिए थिरुकोकर्णम रंगनायकी अम्मल प्रेणास्रोत है , उनके ज़ज़्बे को हम सबका सलाम हमेशा रहेगा |